Friday, February 5, 2010

गर्त में गरिमा

हे भारत की राष्ट्रपति! आपने हमें निराश नहीं किया। हमें आपसे यही आशा थी। अफजल गुरु को अभी आपने शायद अगले गणतंत्र पर पद्‌म भूषण देने के लिए बचाकर रखा है। दिग्वजय सिंह आजमगढ़ जाकर बटला हाउस में पुलिस की दिन-दहाड़े हुई मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों की जन्मभूमि के दर्शन तो करेंगे, लेकिन इस मुठभेड़ में शहीद हुए दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चन्द्र शर्मा के घर भी ये कभी गए? नहीं। इनसे भी यही आशा थी। निश्चय ही हमारा गणतंत्र एक षड्‌यंत्र में बदल चुका है, जहां देशद्रोही पुरष्कृत और देश-प्रेमी तिरस्कृत हैं।

राष्ट्रीय गौरव के पुरस्कारों की सूची अब शातिरों का सूचकांक है। गौर करें एक ठग, एक चरित्रहीन अपराधी, एक  कातिल आतंकवादी, एक चमड़ी उधेड़कर व्यापार करने वाला अब हमारे राष्ट्रीय गौरव हैं। गुणों की इस मूल्यांकन पद्धति पर गौर करें। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और संत सिंह चटवाल के इतिहास में कुछ 'खास' है। दोनों में बड़ी समानता है। दोनों ने भारतीय बैंक प्रणाली की 'उस ओर' से समीक्षा कर समृद्धि पाई है। प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह और सरदार संत सिंह चटवाल में भी एक उल्लेखनीय समानता है। दोनों ही परस्पर पृथक कारणों से देश की 'मोस्ट वांटेड' सरदार हैं।

अब जरा पद्‌मभूषण सरदार संत सिंह चटवाल द्वारा की गई 'राष्ट्र की उन उल्लेखनीय सेवाओं' का संदर्भ लें जो पुलिसिया दस्तावेजों में दर्ज हैं। ठगी के एक मामले में मुंबई पुलिस ने 2 फरवरी 1979 को चटवाल को गिरफ्तार कर हवालात में फुटबाल बनाकर जेल भेज दिया था। इसी ठगी प्रकरण में चटवाल की पत्नी भी उसके साथ गिरफ्तार की गई थी। उसने भारत में बैंक ऑफ इंडिया को करीब 29 करोड़ रुपए का चूना लगाया और बैंक ऑफ इंडिया की ही न्यूयार्क शाखा से भी कई मिलियन डॉलर की ठगी की। चटवाल का यह चरित्र है कि वह भारत में ठगी करता है और अमेरिका में रहता है। सीबीआई की सूची में वह 10 वर्षों तक 'मोस्ट वांटेड' इनामी अपराधी रहा है। उसकी गिरफ्तारी के लिए 'रेड कार्नर-नोटिस' भी पूरी दुनिया में जारी हो चुका है और अमेरिका से उसके प्रत्यर्पण की गुजारिश भी की गई थी। लेकिन गुजरे सात वर्षों में सब कुछ बदल गया। सरदार मनमोहन सिंह इधर प्रधानमंत्री बने उधर 'कुछ ऐसा हुआ' कि चटवाल के खिलाफ सीबीआई ने कार्यवाही करना ही बंद कर दिया। वह फिर से भारत में अपना जाल फैलाने लगा। इस बार उसने बैंक को नहीं पूरे राष्ट्र को ही ठग लिया। वह अब 'चार सौ बीस चटवाल' नहीं पद्‌मभूषण सरदार संत सिंह चटवाल बन चुका है।

पद्‌म श्री से सम्मानित हुए फिल्मी सितारे सैफ अली खान को सभी जानते ही होंगे। इस फिल्मी सूरमा की 'राष्ट्र के प्रति विशिष्ट सेवाओं' पर जब शोध किया गया तो पता चला कि वह मशहूर क्रिकेटर नवाब मंसूर अली खां पटौदी के बेटे हैं। उनकी मां शर्मिला टैगोर हैं। उन्होंने बड़ी बेरहमी से काले हिरन का शिकार किया था, जिसका मुकदमा अभी चल रहा है। उन्हें गुड़गांव के जिला प्रशासन ने बंदूक के लाइसेंस रखने योग्य न पाकर उनका लाइसेंस रद्‌द कर दिया है। अमृता नामक महिला से उन्होंने पहली घोषित शादी की थी, किन्तु उसे और अपनी एक संतान को लावारिस छोड़ यह किसी करीना कपूर का करीने से काम लगाने के कारण चर्चा में रहा। ब्याहता पत्नी और अपने बच्चों को लावारिस छोड़ देना, विवाहेतर संबंध, रखना, हिरनों को मारना यह सभी 'राष्ट्र की विशिष्ट सेवाएं हैं।' न समझ सके हो तो किसी 'सरदार' से समझो या 'असरदार' से समझो।

पद्‌म श्री पाकर खुद सम्मानित और हमें अपमानित करने वाले राष्ट्र के तीसरे विशिष्ट सेवक हैं- गुलाम मुहम्मद मीर। यह जम्मू-कश्मीर के इनामी आतंकवादी हैं। हत्या, लूट डकैती के दर्जनों मुकदमे इन पर दायर हैं। भारतीय सेना पर घात लगाकर हमले करने में दक्ष इस आतंकवादी को बारूदी सुरंग बनाने में महारथ हासिल है।

एक और पद्‌म श्री हैं मिर्जा इरशाद। कानपुर-उन्नाव में इनका जानवरों की खाल खींचकर चमड़ा बनाने का कारोबार है। कानपुर में मिर्जा इंटरनेशनल लिमिटेड नामक इनकी फर्म है, जो चमड़े का निर्यात करती है। इनकी तीन इकाइयां हैं। कानपुर में चमड़े का कारोबार करने वाली 402 टेनरी हैं, जो गंगा में प्रदूषण फैलाने के कारण खदेड़ी जा रही हैं और अब कुल 220 बची हैं। यह सभी बड़ों की हैं। प्रदूषण वालों और प्रशासन से बात करने के लिए इस खाल व्यापारी गिरोह ने अपना सरगना बनाकर अब पद्‌म श्री का तमगा खरीद लिया है। राष्ट्रीय गरिमा को गर्त में धकेलने वालों की एक लंबी सूची है। यह नहीं कि इस तरह के पापियों को पहली बार पुरस्कार दिए गए हों। इसके पहले भी ऐसा हुआ है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के स्वयंभू सूरमा अटल बिहारी वाजपेई जब प्रधानमंत्री थे तब सन्‌ 2000 में संडीला (हरदोई) की कुद्दैशिया बेगम को भी ऐसी पद्‌म श्री पुरस्कार दिया गया था। इनका इतिहास यह था कि उन्होंने संयुक्त प्रांत के अंग्रेज गवर्नर की रात अपनी विशिष्ट सेवाओं से गुलजार की थी। सुबह इस विशिष्ट सेवा से खुश होकर अंग्रेज गवर्नर ने इनको 'बेगम' की उपाधि और इनके मियां एजाज रसूल को मेहरबानी में 'नवाब' बना दिया। पाकिस्तान विभाजन की विभीषिका के दौरान यह सड़क पर उतर आईं और नारे लगाती घूमीं 'लड़कर लेंगे पाकिस्तान।' भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. महेंद्र भंडारी भी चटवाल के ही चरित्र के थे।

मैं इन बेपनाह अंधेरों को/सुबह कैसे कहूं?
मैं इन नजारों का/अंधा तमाशबीन नहीं।
 
(Published in By-Line National Weekly News Magazine (Hindi & English) - in February 13, 2010 Issue)

No comments: