Friday, February 12, 2010

धन्यवाद! उत्सव शर्मा

उत्सव शर्मा देश की उस बेशर्म व्यवस्था को आईना दिखाता है कि जिसमें पुलिस से लेकर न्यायपालिका तक शामिल है। उत्सव के उत्साह ने हमारा आत्मविश्वास बढ़ाया है। क्रमश: पलायन करता विश्वास ठहर गया, लगा कि अभी शेष है सम्भावना। युवा ही कुछ कर सकते हैं। उत्सव ने कर डाला। हरियाणा के जिस चरित्रहीन डीजीपी राठौर को तब भी पुलिस और यह व्यवस्था बचा रही थी, उसने इस बार भी इसे बचा लिया। विडम्बना देखिए कि रुचिका मामले में यह राठौर कभी जेल ही नहीं गया और राठौर पर हमला करने वाला उत्सव आज जेल में है। चूंकि राठौर हम पर भारी था इसलिए हम उत्सव शर्मा के आभारी हैं।
 
उत्सव की पृष्ठभूमि प्रासंगिक है। उत्सव के पिता प्रोफेसर एस के शर्मा मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्राचार्य और मां प्रोफेसर इंदिरा शर्मा मनोविज्ञान की विभागाध्यक्ष रही हैं। यह दम्पति बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का अति आदरणीय शिक्षक दम्पति माना जाता है। इनका इकलौता बेटा 'उत्सव शर्मा' भी बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का फाइन आर्ट का स्वर्णपदक प्राप्त स्नातक है और वर्तमान में वह एनीमेशन फिल्म पर काम कर रहा था। वह प्राय: समाज में बढ़ते अन्याय को असहनीय बताता था। वह पाखंडी नहीं था इसलिए नारेबाजी करने के बजाय प्रतिकार करने की पहल भी उसी ने की। उत्सव शर्मा ने सिद्ध कर दिया है कि देश की तरुणाई में अभी भी अन्याय का प्रतिकार करने की दम है और व्यवस्था राक्षसों की रक्षा में मुस्तैद। उत्सव शर्मा आज जेल में है और राठौर कभी भी जेल नहीं भेजा गया, यह भी एक सवाल है।
 
सवाल पत्रकार साथियों से भी है कि वे तब कहां थे जब हरियाणा का यह डीजीपी पुलिसिया रौब में दुर्योधन बना चारित्रिक चीर हरण किया करता था। तब वह डीजीपी था। अधिकांश पत्रकार साथी 'रिस्क' नहीं लेना चाहते थे। लगभग 10 वर्ष पहले मैंने एक किताब लिखी थी ''आर्तनाद-मानवाधिकारों की उपेक्षा और अपेक्षा'' के अंश को यहां प्रस्तुत कर रहा हूं ताकि पाठक राठौर का सच भी जान सकें।
 
''रुचिका गिरहोत्रा उस समय 14 वर्षीय उदीयमान टेनिस खिलाड़ी थी। वह एक बैंक अधिकारी की लड़की थी और चंडीगढ़ के पास स्थित पंचकुला के एक अभिजात्य स्कूल की छात्रा थी। एस पी राठौर उस समय पुलिस महानिदेशक (आईजी) थे और नई बनी हरियाणा लॉन टेनिस एसोसिएशन के अध्यक्ष थे। 12 अगस्त, 1990 की बात है रुचिका और उसकी साथी रीमू एसोसिएशन के ऑफिस पहुंचे कि जो राठौर के निवास में ही गैरेज में बनाया गया था। राठौर ने रीमू को किसी बहाने से बाहर भेज दिया और रुचिका के साथ कामांध होकर छेड़छाड़ की। यह बात यद्यपि रुचिका ने रीमू को तो बताई लेकिन अपने माता-पिता को नहीं बताई।
 
दूसरे ही दिन यानी 13 अगस्त को राठौर ने एक दारोगा को रुचिका को बुलाने उसके घर भेजा। सहमी हुई रुचिका ने गुजरे दिन की अशोभनीय घटना की पुनरावृत्ति के भय से जाने से इनकार किया, जिस पर दारोगा का रुख सख्त हुआ।
 
इस प्रकार पुलिस महानिदेशक राठौर को 'खुश' करने से मुकरने के अंजाम से आशंकित रुचिका अपनी मित्र रीमू के यहां पहुंची और वहां रीमू की मां को सारी दास्तान बताई। रीमू की मां श्रीमती मधु प्रकाश ने यह घटना रुचिका के माता-पिता को बताई।
 
रुचिका के पिता ने पूरे मामले की लिखित शिकायत राज्य के गृह आयुक्त से की जिन्होंने सम्पूर्ण प्रकरण की जांच राज्य पुलिस के मुखिया द्वारा किए जाने के आदेश दिए। जांच में राठौर पर लगे आरोप प्रथम दृष्टया सही पाए गए कि जिसके आधार पर राठौर के खिलाफ अभियोग दर्ज करने का आदेश हुआ। इसके बाद के कई वर्षों तक यह फाइल कहीं खो गई।
 
अपने पुलिसिया पद और पहुंच के मद में चूर राठौर ने रुचिका का पीछा नहीं छोड़ा। सादा पोशाकों में राठौर के मातहत पुलिसिया गुंडे रुचिका के पीछे पड़ गए। रुचिका को स्कूल छोड़ना पड़ा। रुचिका के छोटे भाई को मात्र 9 वर्ष की आयु में ही 11 आपराधिक मुकदमे में फंसा दिया गया।
 
उल्लेखनीय है कि यह सभी मुकदमे भी राठौर द्वारा रुचिका के साथ असफल बलात्कार की घटना के बाद ही दर्ज हुए। रुचिका का परिवार उसकी सुरक्षा करने में असमर्थ हो चला। पुलिसिया उत्पीड़न से त्रस्त रुचिका ने 29 दिसम्बर, 1993 को आत्महत्या कर ली।
 
अब तक घूसखोर बाबुओं द्वारा लापता करार दे दी गई फाइलों को ढूंढ़ने और कागजात जुटाने में श्रीमती मधु प्रकाश को सात साल लग गए।'' अंत में सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से सीबीआई ने भारतीय दंड संहिता की धारा-364, 376/511 (गरिमा और शील भंग का प्रयास) 'आरोप-पत्र' राठौर के विरुद्ध दाखिल कर दिया। मुकदमा चला, सजा हुई और जमानत भी हो गई लेकिन राठौर को एक दिन भी जेल नहीं जाना पड़ा किन्तु 'उत्सव शर्मा' जेल में है। कामुक एस पी एस राठौर को तब भी व्यवस्था बचा रही थी और जब न्याय से ऊबे नागरिक ने कानून अपने हाथ में लिया तब भी व्यवस्था राठौर की ही पक्षधर, पैरोकार और अंगरक्षक बनी दिखाई दे रही है।
 
ऊबा नागरिक और कर भी क्या सकता है? इस घुटन में राक्षस राठौर जैसों का दम्भ एक ऊबे नौजवान नागरिक ने तोड़कर बता दिया कि देश की तरुणाई में अभी भी पढ़ने और अच्छे काम के लिए लड़ने का जज्बा है। देश दोराहे पर है उसे तय करना ही होगा कि सैफ, चटवाल जैसे लोगों की जरूरत है या उत्सव शर्मा जैसे पढ़ने और लड़ने वाले नौजवानों की। देश के किसी कोने में ही सही पर भगत सिंह जिंदा है। धन्यवाद उत्सव!
 
पापी कौन, मनुज से उसका न्याय चुराने वाला
या कि न्याय छीनते विघ्न का शीश उड़ाने वाला
 
(Published in By-Line National Weekly News Magazine (Hindi & English) - in February 20, 2010 Issue)

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