Friday, February 26, 2010

हैप्पी होली – सुलगता प्रहलाद

हैप्पी होली – सुनकर मैं तो स्तब्ध हूँ। प्रहलाद दुखी ही होगा। आप किसके पाले में हैं होली के या प्रहलाद के? इसीलिए कि आप छद्‌म नहीं करना चाहते और अपने अन्र्तमन की आवाज से बोलते हैं - ''हैप्पी होली'' क्योंकि आपकी भी मंशा कहीं किसी प्रहलाद को षड्‌यंत्र करके मारने की ही है। आप अभी तक सफल प्रतीत होते हैं। आगे?
 
जगह-जगह होली प्रहलाद को गोद में लिए बैठी है। आग भी लगाई जा चुकी है ताकि प्रहलाद जल जाए और डायन राक्षसी होली बच जाए। हुआ यह था कि होली अपने ही षड्‌यंत्र का शिकार हो जल गई थी और प्रहलाद बच गया था पर यह सभ्यता उस खलनायिका होली के यों जल जाने और प्रहलाद के बच जाने से दुखी है सो होली को शुभकामनाएं दे रहे हैं - ''हैप्पी होली''। चुड़ैलों के चंगुल में फंस चुके हैं। हम होली जैसी पिशाचनी राक्षसी खलनायिका के साथ खड़े हैं और प्रहलाद के विरुद्ध चीख रहे हैं।
 
हर जगह चरित्रवान, ईमानदार प्रहलाद को जलाकर मार डालने के षड्‌यंत्र हो रहे हैं और होली को यह दायित्व है। इस बजट को ही देख लें। प्रहलाद रूपी जन-गण-मन को मनमोहनी अर्थशास्त्र की होली गोद में लेकर बैठ चुकी है। आक्रोश की वाला सुलग रही है और हमारे जैसे लोग उस आग में घी भी डाल रहे हैं पर चिल्ला रहे हैं हैप्पी होली, लावारिस प्रहलाद प्रश्न पूछ रहा है कि किसी के पास वह मरहम है जो मेरे जले जज्बातों के जख्मों पर लगाई जा सके। है किसी के पास बरनॉल जैसी कोई मरहम। प्राय: हर घर में एक दो बच्चे हैं प्रहलाद जैसे सुन्दर और निश्छल। हमारे देश में नन्हें नागरिक जिनकी उदासी का प्रबन्ध साल दर साल बजट पर हम कर ही लेते हैं। जिस देश के नन्हें प्रहलादों को शिक्षा के लिए भी ऋण लेना पड़ रहा हो वहां तरुणाई के स्वाभिमान पर संदेह के सवाल स्वाभाविक रुप से उठेंगे ही। निश्चय ही वह लोग जो इस तरह होली को अपनी शुभ कामनाएं दे रहे हैं वह प्रहलाद जैसे चरित्रों के वर्ग शत्रु हैं।
हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका बहुत हरामखोर, घूसखोर थे। हिरण्यकश्यप का एक बेटा था प्रहलाद। प्रहलाद युवा वर्ग का प्रतिनिधि था सो उसके सिद्धान्त थे। सिद्धान्त के लिए उसे लड़ना आता था, अड़ना भी आता था। वह समझौतावादी नहीं था। वह अपने घूसखोर, दलाल पिता हरामखोर हिरण्यकश्यप के अनैतिक कामों घूसखोरी, कालाबाजारी का विरोध करता था। सो उसके पिता हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर उसको मारने का षड्‌यंत्र बनाया। होलिका का अपने जमाने के किसी फायरब्रिगेड अधिकारी से ईलू-ईलू था सो उसे वरदान था कि वह आग से नहीं जल सकती। इसलिए तय हुआ कि होलिका अपनी गोद में प्रहलाद को लेकर आग में चली जाएगी और होलिका तो जलेगी नहीं पर प्रहलाद जल जाएगा। लेकिन हुआ उल्टा, होलिका ही जल गई और बचा सिद्धान्तवादी नैतिक ईमानदार कर्मठ प्रहलाद। हम हरामखोर होलिका के पक्षधर हैं और कह रहे हैं ''हैप्पी होली''।
 
एक औसत भारतीय नागरिक जब दिन भर हलाल होता है तो उसकी आमदनी 32 रुपये प्रतिदिन होती है। इसी में उसे अपना और अपने प्रहलाद जैसे बच्चों का भी पेट पालना है लेकिन हरामखोर हिरण्यकश्यपों-होलिकाओं की मौज है। पाकिस्तानी आतंकी कातिल कसाब पर यह सरकार प्रतिदिन 8 लाख पचास हजार रुपये खर्च कर रही है और इस प्रकार गुजरे 15 महीनों में उस पर 39 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। यह रुपया आपका है किसी हरामखोर के बाप का नहीं। ये पैसा आपसे टैक्स में वसूला गया है। और करो हैप्पी होली।
 
जिन लोगों की जिन्दगी रंगीन है वह आनन्दित है शेष बची देश की जनता बाहरी रंगों से अपनी बदरंग हो चुकी जिन्दगी को रंग रही है। यह ऊपर से पड़ा रंग क्या हमारी जिन्दगी को रंगीन बना सकेगा? खुशियां बाजार में बिक रही हैं और ख्वाहिशें खामोश खीसें निपोर रही हैं। न खुशियों के विक्रेता खुश हैं न क्रेता। दरअसल यह मरीचिका है कि जिसमें हम खुशियों को अपनी गिरफ्त में लेने के लिए उम्र से अधिक सांसे ले चुके हैं। श्षो बची जिन्दगी पर संशय है और खुशियां अभी भी दूर बहुत दूर क्षितिज के उस पार यही मरीचिका है जिसे इस बजट में मनमोहन शास्त्र ने गढ़ा है।
 
सोनिया, प्रियंका, अम्बिका सोनी, शीला दीक्षित, ममता बनर्जी, मायावती यानी कि हैŒपी होली और आपके नन्हें नागरिक किसी प्रहलाद को पुलिस की गोली। प्रहलाद हमारे चरित्र पर प्रश्न है पहचानो। युवाओं! प्रहलादों!! जला डालो होली को अपने अन्दर के प्रहलाद को प्रखर करो, मुखर करो।
 
हम आसान किस्तों में गरीब बनाए जा रहे हैं। गरीब होंगे तो गुलाम बन ही जाएंगे। गुलाम होंगे तो यह आजादी किस काम की। वह यही चाहते हैं। तमाम राहुल, प्रियंका, सचिन, जितिन जैसे लोगों को अपने यहां नौकर चाहिए इसीलिए इस देश के नागरिक को नौकर बनाने का उपक्रम जारी है। घरेलू नौकर, दुकान का नौकर, कल कारखानों का नौकर, विभिन्न श्रेणी का सरकारी नौकर। स्वतंत्र राष्ट्र में हमारे बच्चों का सपना है नौकर बनना।
 
हमारे बच्चों को गुलामी से गोरे साहब के नौकर बनने से बचाने के लिए गांधी जूझा, हमें आजाद किया ताकि हम गुलाम या नौकर न बनें पर हम तो ठहरे प्रवृत्ति से गुलाम सो नौकर बनने में प्रतिभा की पहचान करते हैं। नौकर बनकर चोरी घूसखोरी करते हुए फिर ईमानदारी के प्रहलादों को जलाकर उत्सव मनाते हैं और चाण्डालों की तरह चिल्लाते हैं - ''हैप्पी होली''
 
(Published in By-Line National Weekly News Magazine (Hindi & English) - in March 06, 2010 Issue)

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