Tuesday, February 21, 2012

हम कोलंबस हैं हमारे हाथों में भूगोल की किताबें नहीं होतीं

" हम कोलंबस हैं हमारे हाथों में भूगोल की किताबें नहीं होतीं,
हमारी निगाहों में स्कूल की कतारें नहीं होती,
हमारे घर से लाता नहीं टिफिन कोई,
तुम्हारी तरह हमको पिता दिशा नहीं समझाता,
तुम्हारी तरह हमें तैरना नहीं सिखलाता,
हमारे घर पर इंतज़ार करती माँएं नहीं होती.

हम कोलंबस हैं हमारे हाथ में होती हैं पतवारें,
हमारी निगाह में रहती हैं नाव की कतारें,
हमारे पिता ने निगाह दी तारों से दिशा पहचानो,
हमारे पिता ने समझाया तूफानों की जिदें मत मानो,
हमारी मां यादों में बस सुबकती है आंसू से रोटी खाती है,
स्कूलों की छुट्टी के वख्त हमारी मां भी समंदर तक आके लौट जाती है,
मेरी मां जानती है मैं कभी न आऊँगा फिर भी मेरी सालगिरह मनाती है.

तुम साहिल पे चले निश्चित वर्तमान की तरह
मैं समंदर पर सहमा अनिश्चित भविष्य था भूगोल में गुम
तुम तो सुविधाओं को सिरहाने रख सोते ही रहे
हमने हवाओं के हौसले की हैसियत नापी
तुमने तोड़ा था उसूलों को जरूरत के लिए
हमने जज़बात की हरारत नापी
तुम तो शराब के पैमाने में ही डूब गए
मैंने समंदर के सीने की रवानी नापी
तुम्हारी काबलियत काँप जाती है नौकरी पाने के लिए
मेरी भूल भी उनवान है धरती पे लिखा
तुम्हारे और मेरे बीच यही है फर्क समझो तो
जिन्दगी की हर पहल में तुम हो नर्वस
और मैं कोलंबस
तुम्हारे हाथ में भूगोल की किताब है पढो मुझको
मुझको है मां से बिछुड़ जाने का गम . " -- राजीव चतुर्वेदी

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