Monday, April 9, 2012

रास्ते ले कर चल पड़े हैं मुझको रिश्तों से बहुत दूर

"रास्ते ले कर चल पड़े हैं मुझको रिश्तों से बहुत दूर, ---आवाज़ मत दो.
रिश्ते कलेंडर से टंगे हैं मेरे जेहन में
तकदीर में जो दर्ज थीं तारीख अब तहरीर में तपती हुई हैं 
बदलते मौसमों का रंग ...रंग में राग शामिल है
हवन  की अग्नि साक्षी है की जिसकी आग शामिल है
दुआएं दूसरों की और अपना दहकता सा दंभ
घृणा की बारूद से सुलगे प्यार के थे वही जुमले
वह गमले में रोपा था जिसे तुलसी का वह पौधा 
वह इमारत जिसमें लिखी थी प्यार की कितनी इबारत, ---छोड़ आया हूँ
हौसले अब लौटने के हासिये पर हैं अदालत की मिसिल में
अब चलूँ मैं गलती अगर मेरी थी तो गलतियां तेरी भी थी
राहगीरों को हम सफ़र समझो तो तेरी भूल है
अब छलकते छल के रिश्ते हैं यहाँ हर मोड़ पर
कुछ आह, कुछ आशा बटोरे मैं चला उस ओर सूरज डूबता है अब जहां
और चन्दा उग रहा है अब पराजित सा
रास्ते ले कर चल पड़े हैं मुझको रिश्तों से बहुत दूर, ---आवाज़ मत दो.
मैं जानता हूँ ...मानता हूँ --- क्षितिज का छल मुझे निश्छल बना देगा." ---- राजीव चतुर्वेदी (9March'12)   

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