Thursday, May 10, 2012

सभ्यता सदमें में है और सोचती है

"सभ्यता सदमें में है और सोचती है
गुजरी पीढ़ियों से पूछना सीढियां क्यों कम थीं उस दौर में
मकान कच्चे और लोग सच्चे थे वहां
जाने क्यों उस दौर ने फिर करवट सी ली
आज सड़कें चौड़ी और दिल संकरे से हो गए हैं
साहस कुछ सीमित सा हुआ है क्रूरता बढ़ती गयी है
मंदिरों में भीड़ कम पर जेलों में रेलमपेल है
जो दिल में रहा करते थे कभी जजबात अब जेब में क्यों कैद हैं
सभ्यता सदमें में है और सोचती है
गुजरी पीढ़ियों से पूछना सीढियां क्यों कम थीं उस दौर में
मकान कच्चे और लोग सच्चे थे वहां
जाने क्यों उस दौर ने फिर करवट सी ली." ---- राजीव चतुर्वेदी

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