Monday, December 10, 2012

राजनीतिक दल अब दुकान बन चुके हैं और देश बिक रहा है

"राजनीतिक दल अब दुकान बन चुके हैं और देश बिक रहा है. वह दिन दूर नहीं कि जब देश और प्रदेश के मुख्यालयों में ही नहीं मौल में भी इनकी दुकाने खुल जायेंगी . अभी तो वॉल मार्ट ने देश की राजनीति खरीदी है कल वॉल मार्ट से देश की राजनीति बिकेगी भी . इन कॉरपोरेट सेक्टर और केरेक्टर के जरखरीद गुलामों की गुणवत्ता तो देखिये --- देश की राजनीति में अचानक आढतीयेनुमा नेता जिस तरीके से अच्छादित हो रहे हैं उस से लगता है कि अब राजनीति एक मुनाफे का कारोबार बन चुका है .नितिन गडकारी गल्ला मंदी के साक्षात् आढतीये लगते हैं ...अमर सिंह अब नहीं रहे राजनीतिक पुनर्जन्म की कोशिश में हैं ...अहमद पटेल और राजीव शुक्ला अपनी दम पर कहीं से सभासद भी नहीं हो सकते सो आज बड़े नेता भारतीय राजनीति के चमगादड़ों की बस्ती सूर्य ही नहीं प्रकाश के अन्य श्रोतों के विरुद्ध भी लामबंद हो चुकी है और परिणाम स्वरुप अँधेरा है जो किसी भी चोर के लिए अनुकूल वातावरण है, इसी लिए भारतीय राजनीती में चोरों के गिरोह सक्रीय हैं. जन नेता हाशिये पर चले गए हैं. चन्द्र शेखर मुश्किल से साढ़े चार माह ही प्रधान मंत्री रह पाए. अटल बिहारी बाजपेयी भी समुचित अवसर नहीं पा पाए  किन्तु अपनी दम पर कहीं से सभासद भी न हो सकने के काबिल मन मोहन सिंह गुजरे आठ साल से प्रधानमंत्री है. दस बार के सांसद सोमनाथ चटर्जी कहाँ हैं ? संगमा कहाँ लुप्त हो गए ? बिहार की राजनीति में देवेन्द्र प्रसाद यादव आज कहाँ हैं ? कोंग्रेस में मन मोहन सिंह नेता हैं और हर जमीनी नेता पर भारी हैं. भाजपा में नितिन गडकारी, किरीट सोमिया जैसे आढतीयेनुमा नेता राष्ट्रीय चेहरा हैं या फिर अरुण जेटली जैसे चोकलेटी व्यक्तित्व हैं, जन नेता कहाँ हैं ?...कहाँ गुम हो गए गोविन्दाचार्य ? कहाँ हैं उमा भारती ? भाजपा का एक मात्र राष्ट्रव्यापी विश्वसनीयता रखने वाला नेता नरेंद्र मोदी भाजपा के ही नेताओं द्वारा राष्ट्रीय राजनीति में नहीं प्रस्तुत किया जा रहा. वाम पंथी पार्टियों का हाल भी बेहाल है. एबी वर्धन दशकों से विधायक ही नहीं हो पा रहे सो सीपीआई के राष्ट्रीय नेता हैं. दूसरे बड़े नेता हैं अतुल अनजान जो वास्तव में संसद तो दूर विधान सभा भी दूर सभासदी से भी अनजान हैं वह राष्ट्रीय राजनीती पर अपनी पार्टी का मार्ग निर्देशन कर रहे हैं सो सीपीआई का हाल जग जाहिर है. सीपीएम के नेता है प्रकाश कारंत उनकी वायु सुन्दरी एयर होस्टेस बीबी वृंदा कारंत और सीता राम येचुरी...इन कारंतों और येचुरी पर कहाँ कितना वोट है सभी जानते हैं ...इनकी औकात भी नहीं है कि कहीं से लोकसभा का चुनाव भी लड़लें सो राज्यसभा में घुस कर राज्य कर रहे हैं यह है इनके जनवाद का अवसरवादी सच. जन नेताओं के प्रभाव को नकार कर चमचों को राजनीतिक दलों ने अपना नेता बना लिया है परिणाम राजनीति पराक्रम की नहीं परिक्रमा की चीज हो गयी है...राजनीती व्यवस्था परिवर्तन का उपकरण न होकर व्यवसाय परिवर्तन का उपक्रम हो चुकी है...राजनीति संघर्ष का आगाज नहीं करती अब राजनीति आरामगाह बन चुकी है. राजनीति का कोर्पोरेट केरेक्टर हो चुका है परिणाम सामने है देखें --राजनीतिक दल कहाँ हैं दुकाने हैं ...फार्म हैं और उस पर आढतीयेनुमा नेता दुकानदारी कर रहें हैं. पार्टियों पर गौर करें --कोंग्रेस कहाँ है ? वहां तो सोनियां एंड सन प्राइवेट लिमिटेड है. समाज वादी पार्टी के एक महान नेता और समाजवाद के फुटकर विक्रेता अमर सिंह नहीं रहे तो क्या हुआ फिर से दूकान खुल गयी है आ ही जायेंगे आखिर देह से ले कर देश तक बड़ी मुस्तैदी से बेचते हैं. समाजवादी पार्टी के नाम पर दो फार्म चल रही हैं ---मुलायम सिंह एण्ड सन्स प्राइवेट लिमिटेड तथा मुलायम सिंह एण्ड ब्रदर्स प्राइवेट लिमिटेड. जय ललिता, करुणानिधी, ममता बनर्जी, चौटाला, अजीत सिंह, शरद पवार, बाल ठाकरे, राज ठाकरे, लालू , पासवान, चन्द्र बाबू नायडू, नवीन पटनायक, फारुख अब्दुल्ला और उनके लल्ला सभी की अपनी-अपनी प्रोप्राइटरशिप फार्म हैं. अब बताईये राजनीति कहाँ हो रही है दूकान लगीं हैं और देश बिक रहा है." ----राजीव चतुर्वेदी

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