Monday, December 31, 2012

बकीलों की निगाह में वह ही हुजूर था

"अमीर था तो फैसले का फलसफा बनता गया ,
गरीब हर बार फैसले से फासले पर था .
गुनहगार के गले में फूल की माला और सत्ता का सुरूर था
सऊर था जिसे वह शहर में सहमा सा दिखा
गुरूर जिसको था उसका हाथ गरीब के गिरेहबान पर ही था
जो खा रहा था घूस पेशकार के जरिये
बकीलों की निगाह में वह ही हुजूर था ."
----- राजीव चतुर्वेदी

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