Thursday, December 6, 2012

साम्प्रदायिकता को कानी आँख से देखने की कवायद न करें


"हिन्दू और मुसलमान भारत में यह दो अलग-अलग राष्ट्र विकसित हो रहे हैं --- यह खतरनाक है . पाकिस्तान के इशारे पर प्रथकतावादी यही चाहते हैं . एक समय था जब सुबह रेडिओ पर मुहम्मद रफ़ी का गाया --"...मन तडपत हरि दर्शन को ..." गूंजता था तो लता गाती थीं --"...अल्लाह तेरो नाम ...दाता तेरो नाम ..." यह भी हो सकता है कि यह उनकी व्यावसायिक विवशता रही हो . आज दोनों तरफ की साम्प्रदायिकता सत्य और न्याय को कानी आँख से देख रही है ---ज़रा गौर करें ---बाबरी मस्जिद की शहादत पर हर साल छाती पीटने वाले मुसलमान यह तो मानते हैं कि बाबरी मस्जिद का तोड़ा जाना गलत था पर क्या यह बताएँगे कि जब औरंगजेब के जमाने से जब हिन्दुओं के मंदिर तोड़े जा रहे थे तब तुम्हारी इन्साफ पसंदी कहाँ थी ? हिन्दुओं के छः हजार से अधिक मंदिर तोड़े गए और मुसलमानों की तरफ से इन्साफ पसंदी की तब से अब तक एक भी आवाज नहीं फूटी ....देश में एक मात्र जम्मू -कश्मीर वह राज्य है जो सदैव मुसलमान शासित रहता है वहां गुजरे एक दशक में 200 से अधिक मंदिर तोड़ दिए गए पर जब हिन्दुओं के मंदिर तोड़े जाते हैं तो मुसलमानों की तरफ से शातिराना चुप्पी है .अगर पूजाघर /इबादतगाह तोड़ना गलत है तो जो गलती औरंगजेब के जमाने से आज तक मुसलमान जारी किये हुए हैं और शातिराना चुप्पी साधे हैं वही काम जब एक बार हिन्दुओं ने बाबरी मस्जिद पर कर दिया तो वह गुनाह है और बीस साल से छाती पीट रहे हैं, ---क्या यह न्याय संगत है ? दूसरे, सभी जानते हैं कि मोबीन से लेकर सूफियान की राज सत्ता के रहते मुहम्मद साहब कभी मक्का में प्रवेश ही नहीं कर सके और अपने आख़िरी दौर में उन्होंने अपनी प्राण रक्षा के लिए भारत में शरण ली थी जहाँ उन्होंने जम्मू-कश्मीर जा कर अखरोट की लकड़ी से भव्य मस्जिद बनाई . चूंकि वह मुक़द्दस मस्जिद स्वयं मुहम्मद साहब ने बनाई थी अतः मुसलमानों के एक तीर्थ की तरह वह चरार-ए-शरीफ नामक मस्जिद जानी जाने लगी . जिसे उसी कालखंड में एक मुसलमान आतंकी मस्तगुल ने जला कर राख कर दिया कि जिस कालखंड में बाबरी मस्जिद ढहाई गयी . यानी बात साफ़ है कि चरार -ए -शरीफ जैसी स्वयं मुहम्मद साहब की बनाई मस्जिद को अगर कोई पाकिस्तानी मुसलमान जला कर राख कर दे तो कोई बात नहीं ...देश में मुहम्मद साहब की आख़िरी निशानी नहीं रही तो कोई बात नहीं पर बाबरी मस्जिद पर छाती पीटना नहीं भूलेंगे .राम और कृष्ण दोनों की जन्म स्थली पर मुग़ल आक्रमणकारीयों ने मस्जिद बनाई . मुहम्मद साहब की बनाई मस्जिद चरार -ए -शरीफ का कोइ दर्द नहीं ? जम्मू-कश्मीर आज़ादी से अब तक मुसलमान शासित राज्य है वहां हिन्दू कितना सुरक्षित है यह कभी सोचा है उन कट्टरपंथी मुसलमानों ने जहां से लाखों कश्मीरी पंडित दो दशकों से पलायन कर रहे हैं ? जम्मू-कश्मीर में हिन्दुओं को अपने तीर्थ अमरनाथ यात्रा करने पर हर साल क़त्ल -ए -आम का शिकार होना पड़ रहा है क्या यह जम्मू -कश्मीर का नज़ारा इन कानी आँख से सेक्यूलर सत्य देखते लोगों को दिखाई नहीं देता ? यह लोग जम्मू-कश्मीर नहीं देखते पर गुजरात देखते हैं  ...वही गुजरात जहां महाराष्ट्र से पलायन करके शाहीन और उसका परिवार जा बसा है और महफूज़ महसूस कर रहा है ...गुजरात के दंगों की तो सुनियोजित शातिराना शैली में बातें करेंगे पर क्या यह बताएँगे कि गुजरात के दंगे क्यों शुरू हुए ? गोधरा में हिन्दू तीर्थ यात्रियों से भरी ट्रेन जला कर तीर्थ यात्रियों को ज़िंदा जला डालने का गुनाह और उस पर अब तक की शातिराना चुप्पी साम्प्रदायिकता को कानी आँख से देखना ही है,--- इससे बाज आयें ...अब बहुत हो चुका ...शान्ति से रहने की कोशिश करें एक -दूसरे के जख्म न कुरेदें ...हिन्दू भी शौर्य दिवस मनाने से बाज आयें क्योंकि  अगर अपनी सरकार में बाबरी मस्जिद ढहा देना शौर्य था तो औरंगजेब तुमसे बड़ा सूरमा था जिसने अपनी सरकार में 6000 से अधिक मंदिर ढहाए ...फारुख अब्दुला /शेख अब्दुला भी 200 से अधिक मंदिर ढहा कर शौर्य से सरकार चला रहे हैं और मस्त गुल ने भी चरार -ए -शरीफ जला कर राख कर दी थी क्या वह "शौर्य" था या शातिर की करतूत ? लाखों हिन्दू लोग अमन और वतन के लिए बाबरी मस्जिद के मुद्दे पर मुसलमानों के जज्वात के साथ हैं पर गोधरा काण्ड की निंदा करती एक आवाज़ भी मुसलमानों के मुँह से आज तक नहीं फूटी क्यों ? जम्मू-कश्मीर में 200 से अधिक मंदिर तोड़े जाने पर अभी तक देश में क्या है कोई अमन पसंद मुसलमान है जो बोले ? साम्प्रदायिकता को कानी आँख से देखने की कवायद न करें ." -----राजीव चतुर्वेदी


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