Monday, February 25, 2013

वह तेरी आहट थी या मेरी बौखलाहट मौन टूट गया

"वह तेरी आहट थी
या मेरी बौखलाहट
मौन टूट गया
मौन ने तनहाई से तंग आकर तरन्नुम का तराना छेड़ा
मौन मुझको देखा तो कुछ लोगों ने फ़साना छेड़ा
मौन मेरे मन से टकराया तो आहट निकली
और उस आहट से जो अक्षर निकले
मौन से भयभीत से लोगों की वही भाषा थी
कहीं भड़का वह लावा बन कर
भूगोल में ज्वालामुखी की तरह फूट गया
कहीं अंगार ...कहीं श्रृगार ...कहीं संसार के सदमे
कहीं दहका ...कहीं महका ...
कहीं चहका वह चिड़ियों जैसा
ओस की बूँद में नहाया वो तितलियों जैसा
जमा तो दर्द हिमालय की वर्फ बन बैठा
उड़ा तो वह जलजले की गर्द बन बैठा
मेरे अन्दर के समंदर से वो उठता रहा भाप बन बन कर
गिरा तो बंजर भी बरसात में सरसब्ज हुए
मौन मेरा मेरे मन में पिघला
आँख से टपका था ...गाल से हो कर गुजरा
वह तेरी आहट थी
या मेरी बौखलाहट
मौन टूट गया ." 
   ----राजीव चतुर्वेदी

1 comment:

Dinesh pareek said...

बहुत उम्दा रचना ..भाव पूर्ण रचना .. बहुत खूब अच्छी रचना इस के लिए आपको बहुत - बहुत बधाई

मेरी नई रचना

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प्रेमविरह