Tuesday, April 23, 2013

कहाँ गए कामोद्दीपन करने वाले कमीने ?


"कहाँ गए कामोद्दीपन करने वाले कमीने ...यह सेक्स की संस्कृति और उसकी विकृति बेचते मुम्बई के फ़िल्मी रंडी -भडुए ...भोजन से कुपोषित समाज का कामोद्दीपन करके देह बाजार का जो व्यापार अश्लीलता परोसती मुम्बईया फ़िल्मी संस्कृति ने किया है ...अश्लील गानों के बाजार में परोक्ष सेक्स बेचने बाले यह रंडी -भडुएनुमा गायक ... भोजपुरी के टेम्पू /ऑटो /बसों में बजते अश्लील गाने समाज में कामोद्दीपन करने में सफल हुए परिणाम फ़िल्में हाउसफुल हुयी ...देह व्यापार के अड्डे गुलजार हुए ...गानों की सीडी खूब बिकीं और समाज में कामुकता की भूख अन्तुलन की हद तक प्रचण्ड हो गयी ...भाषाएँ ही नहीं परिभाषाये भी क्रय क्षमता के अनुसार रातों रात बदल गयीं देखिये --- गाँव के जमींदार के यहाँ शादी में पांच हजार ले कर जो नाचे वह "रंडी" और दुबई में दाउद के यहाँ शादी में पचास लाख ले कर नाचे वह भारत की सांस्कृतिक राजदूत ऐश्वर्य राय . कामोद्दीपन से फिल्मों के ग्राहक बढे, अश्लील गानों के एलबम के ग्राहक बढे, कॉल गर्ल्स के ग्राहक बढे, देह व्यापार के अड्डों के ग्राहक बढे, शराब शबाब के ग्राहक बढे , कंडोम और उत्तेजक दवाओं के ग्राहक बढे ...इन धंधों से जुड़े लोग रातों रात मालदार होगये ...मालदारों पर फर्क नहीं पडा ...मध्यमवर्ग गरीब होने लगा ...और गरीब गुनाह करने लगा ...बच्चियों पर होते बलात्कार की घटनाओं पर गौर करें --- भुक्तभोगी भी गरीब या निम्नमध्यम वर्ग से हैं और अभियुक्त भी गरीब या निम्न माध्यम वर्ग से हैं ...जो वर्ग सेक्स खरीद नहीं सकता वह सेक्स की लूट /डकैती /राहजनी कर रहा है ...देश की कृषि और ऋषि परम्परा की संस्कृति देह व्यापार के विकृत बाजार में बदल दी गयी है ...पहले वातावरण में गूंजता था ॐ , अब गूंजता है कन्डोम ...कमीनो ने कामोद्दीपन करके कहाँ ला दिया ...अब हमारी बेटियाँ असुरक्षित हैं ...अब जो सेक्स खरीद नहीं सकता वह सेक्स की राहजनी कर रहा है ." -----राजीव चतुर्वेदी    

1 comment:

पूरण खण्डेलवाल said...

आलेख का एक एक अक्षर सत्यता से परिपूर्ण !!