Saturday, July 27, 2013

तवायफ के होंठ पर तबस्सुम तलाशते लोगों

"तवायफ के होंठ पर तबस्सुम तलाशते लोगों,
धूप बादल से गुजर कर धरतियों पर आ गई.
चांदनी के चरित्रों पर अब दोपहर की सनद चस्पा है,
शाम को सहमा हुआ सा उजाला रात से राहत की उम्मीद क्यों करता है ?
सहमे हुए से शहर में सोचती है सभ्यता,
वक्त की यह वेदना
आँखों से टपक कर गाल पर क्यों आ गयी ?"
----राजीव चतुर्वेदी

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