Wednesday, August 14, 2013

खाद्य सुरक्षा बिल-- देश की भूख में वोट नहीं तलाशिये


"Food Security Bill यानी खाद्य सुरक्षा बिल ...अच्छा झुनझुना है ...पेप्सी की तरह देश को पिलाया जा रहा है जिससे पोषण कुछ भी नहीं डकार जोरदार आ रही है ...वह यही चाहते हैं ...वह चाहते हैं आप भूखे न मरें क्योंकि भूखा मरता आदमी विद्रोह कर देता है ...वह यह भी नहीं चाहते कि आप भरे पेट हों क्योंकि भरे पेट आदमी अपने अधिकार, नीति, सिद्धांत, राष्ट्रवाद की बात करता है ...वह चाहते हैं कि आप भूख से पूरी तरह नहीं मरें थोड़े से ज़िंदा भी रहें ताकि उन्हें वोट दे सकें ...वह चाहते हैं आप अधमरे रहें ...अधमरा कुपोषित नागरिक राशन की दुकान या वोटर की कतार में कातर सा खड़ा पाया जाता है आन्दोलन नहीं करता . उसे अखबार की ख़बरें नहीं अखरतीं ...उसे दूरदर्शन पर राष्ट्रीय दर्द नहीं देखना ...वह जब कभी दूरदर्शन देखने का जुगाड़ कर पाता है तो अपनी जिन्दगी में कुछ समय को ही सही कुछ सुखद कल्पनाएँ आयात कर लेता है ...उसे रूपये का अवमूल्यन, पेट्रोल की कीमत , टेक्स की दरें, शिक्षा का मंहगा होना, फ्लेट का मंहगा होना, घोटाले या रोबर्ट्स बढेरा जैसों का समृद्धि का समाज शास्त्र प्रभावित नहीं करता ...वह यही चाहते है इसीलिए वह चाहते हैं भूखे पेट कुपोषित अधमरा आदमी जो महज वोटर हो नागरिक नहीं . अगर खाद्य सुरक्षा ही देनी है तो नौ साल गुजर गए इस गए गुजरे मनमोहन की सरकार को क्या कृषि को लाभकारी बनाने की कोई योजना आयी ? खेतों में अन्न की जगह अब प्लौट उग रहे हैं इस विनाश को नगर विकास बताते तुगलको जब आबादी बढ़ेगी और खेत कम हो जायेगे तो कैसे पेट भरेगा ...तब कृषि उत्पाद महगे तो होंगे पर किसान के यहाँ नहीं आढ़ततिये के गोदाम पर और मालदार आदमी वह खरीद लेगा गरीब फिर भूखा मरेगा ...जैसे गाय /भैंस का दूध उसके बच्चे से ज्यादा हमारे बच्चे पीते हैं ...गाँव के बच्चों से ज्यादा शहर के बच्चे घी /मख्खन खाते है ...वह यही चाहते हैं . --- देश की भूख में वोट नहीं तलाशिये कृषि को लाभकारी बनाइये ...यह आपके राहुल, आपकी प्रियंकाएं या प्रियंकाओं के रोबर्ट्स केवल अपना पेट भरते हैं ...देश का पेट तो किसान भरता है ---उसके लिए क्या किया ?" ---- राजीव चतुर्वेदी


Monday, August 12, 2013

तुम्हारी लम्बी सी जिन्दगी में

"तुम्हारी लम्बी सी जिन्दगी में
मेरा छोटा सा हस्ताक्षर
मिट गया होगा
कदाचित अपनी श्याही में या फिर तनहाई में सिमट गया होगा
वेदना मुझको नहीं
संवेदना तुमको नहीं
फिर शोर कैसा है ?
शायद हमारे बीच जो बहती नदी थी
बाढ़ आयी है उसी में
और दूरी बढ़ गयी है बाढ़ में हमारे किनारों की

हमारी खामोशियों के बीच बहती हवाओं में कुछ पत्ते खड़खडाते हैं
वह अपनी वेदना कहते हैं
हमारी बात जैसी है
गुजर गए दिन की जैसी है
गुजरती रात जैसी है
तुम्हारी लम्बी सी जिन्दगी में
मेरा छोटा सा हस्ताक्षर
मिट गया होगा
कदाचित अपनी श्याही में या फिर तनहाई में सिमट गया होगा
क्या कहूँ ?
तेरी खामोशी भी मुझको खूबसूरत सी लगती है .
" ---- राजीव चतुर्वेदी

Friday, August 9, 2013

जिस दिन चार्ली चैपलिन को देख कर तुम हँसे थे


" जिस दिन चार्ली चैपलिन को देख कर तुम हँसे थे
मेरी नज़र से गिर गए थे
वह फुटपाथ पर लावारिश नवजात शिशु था
तुम उस पर हँसे थे
वह अनाथालय में पला बड़ा एक कमजोर कुपोषित बच्चा था
तुम उस पर हँसे थे
उसके पैरों में पोलियो हो गया था
तुम उसकी चाल देख कर हँसे थे 
तुमने कभी उसकी कविता पढी ?....पढ़ना
" One murder makes a villain
Hundred a hero
Numbers sanctify." --- Charlie Chaplin 
यानी  --" एक हत्या खलनायक बनाती है
और अनेक हत्याएं नायक
यह संख्या है जो आचरण को पवित्र करती है ."
यह  गंभीर बात है चार्ली चैपलिन की तरह
किन्तु तुम्हें सदैव उसमें एक जोकर दिखाई दिया
शायद तुम्हारा असली प्रतिविम्ब
जिसकी अब तक तुम शिनाख्त नहीं कर सके
कुछ लोग गंभीर चीजों को मजाक में लेते है
और मजाक को गंभीरता में
सच की शहादत में चार्ली चैपलिन मर चुका है
तुम्हारी आदत में ज़िंदा है
तभी तो तुम हँस रहे हो
क्योंकि दरअसल रोना चाहते हो .
" ---- राजीव चतुर्वेदी     

Wednesday, August 7, 2013

अन्न के उत्पादक से ज्यादा प्रतिष्ठित हैं असलहे के उत्पादक

"  जो लोग जिन्दगी के पूर्वार्ध में
अपने गाँव में
कट्टा बनाने का कुटीर उद्योग चलाते थे
खो गए कहीं
 जो लोग जिन्दगी के उत्तरार्ध में
मिसाइल बनाते हैं
याद किये जाते हैं
शोहरत बड़े गुनाह को पनाह देती है
अन्न के उत्पादक से ज्यादा प्रतिष्ठित हैं असलहे के उत्पादक
 और ऐसी दुनियाँ में
किसी किसान के यहाँ जन्म लेकर बड़ा होना
कोई आसान काम नहीं था
फिर भी मैं बड़ा हुआ
मैं जानता था
सृजन की क्षमता पर विध्वंश भारी है
हर भगवान् असलहाधारी है
मैं छोटा आदमी था
मैंने छोटे गुनाह किये
वह बड़ा आदमी था उसने बड़े गुनाह किये
आदतें नहीं बदली
आचरण नहीं बदले
पर व्याकरण हर बार बदले
किसी ने मुझे शिक्षा के असलहे से नौकरशाह बन कर लूटा
जो कानूनविद थे उन्होंने कानूनी असलहे से लूटा
डॉक्टर ने ज्ञान के असलहे से लूटा
वैज्ञानिक ने विज्ञान के असलहे से लूटा
व्यापारी ने तराजू से लूटा
मैं तो कट्टे वाला था
लुटे -पिटों से लूटता भी क्या ?           
शोहरत बड़े गुनाह को पनाह देती है
अन्न के उत्पादक से ज्यादा प्रतिष्ठित हैं असलहे के उत्पादक
 और ऐसी दुनियाँ में
किसी किसान के यहाँ जन्म लेकर बड़ा होना
कोई आसान काम नहीं था
फिर भी मैं बड़ा हुआ .
" ----- राजीव चतुर्वेदी

Sunday, August 4, 2013

इसके लिए जरूरी है कार से मरना

" सिद्धांतों वेदान्तों की बातें मुझको क्या मालुम ?
मैं राशन की कतार की आख़िरी इकाई हूँ
मुझे हर वह व्यक्ति अभिजात्य लगता है
जो हाजमोला खरीदता है
मैं जानता हूँ भूख
धरती के पेट की हो
या
मेरे पेट की
ज्वालामुखी की तरह फटती है
और हवा में दूर तलक उछल जाते हैं कुछ शोले और ढेरों पत्त्थर
जल्दी ही एक आवारा पत्थर
तुम्हारी और आयेगा
पर तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा
बस
तुम्हारी कार का शीशा टूट जाएगा
तुम्हारा तो बीमा है
क्या भूख से मरने का भी कोई बीमा होता है ?
या
मेरे बच्चों को मेरे मरने के बाद ही कुछ मिल जाए
इसके लिए जरूरी है कार से मरना
कार से मरने वाले पर फर्क क्या पड़ता है
कि वह चलाते हुए मरा या चलते हुए ?
" ----- राजीव चतुर्वेदी